शनिवार, 30 नवंबर 2013

मनुवाद या फासीवाद



दलित-बहुजन विमर्श से सरोकार रखनेवाले आंबेडकरवादी चिंतक जिसे मनुवाद कहते हैं उसे साम्यवादी-गांधीवादी बौद्धिक फासीवाद कहते हैं. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. मार्क्स ने सच ही कहा था, आपका द्रष्टिकोण आपके वर्गीय चरित्र पर निर्भर है. और अगर आप हिन्दुस्तान में हैं तो आपका द्रष्टिकोण आपकी जाति पर भी निर्भर है. मगर, छोडिये इन बातों को. मेरी सीधी सादी समज यह है कि आप आरएसएस को सिर्फ फासीवादी या मनुवादी मत कहिये. संघ मनुवादी है और इसलिए फासीवादी भी है.

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

दीने-हिझाझी का बेबाक बेडा



पटना में मोदी ने अपने भाषण के दौरान अल्ताफ हुसैन हाली की एक नज़म की कुछ पंक्तियां सुनाई थी. किसी ने मोदी को लिखकर दी होगी, जो उन्हों ने चहेरे का पसीना पोंछते पोंछते कही थी, हालांकि उसमें दीने-हिझाझी की जगह उन्हो ने दीने-इलाही कहा था. मगर हम उस पर ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे. नज़म इस प्रकार थी:

"वो दीने-हिझाझी का बेबाक बेड़ा
निशां जिसका अक्सा-ए-आलम में पहुंचा
मुझाहिम हुआ कोई खतरा न जिसका
न उम्म में फटका, कुलझुम में जिझका
किये बे-सपर जिसने सातों समंदर
वो डूबा दहाने में गंगा के आकर."

मतबल, अरबस्तान के धर्म का वो नीडर जहाज, जिसका झंडा दुनिया में दुर दुर तक पहुंचा, जिसको रोकनेवाला कोई खतरा पैदा नहीं हुआ. न किसी देश में वो जुदा हुवा, न गहरे समंदर में डुबा, बिना मदद के जिसने सातो समंदर पार किये, वो गंगा नदी के मुख में आकर डुबा.

हाली ने 1857 में सर सैयद के कहने पर यह रचना की थी. अंगरेजी हकुमत में कौम के हालात देखकर सर सैयद ने हाली को कुछ ऐसी नज़म रचने को कहा था, जिसे सुनकर सोई कौम जाग उठे. तब हाली ने मुस्सदसे हाली की रचना की थी. हाली अपनी नज़म में आगे बताते है कि वह बेबाक बेडा गंगा के दहाने में आकर क्यों डुब गया. मोदी जैसे फंडामेन्टालिस्ट लोग जब ऐसी नज़म सुनाते है, तब जानबूझकर उसे तोड मरोडकर रखते है. अब मोदी से हम क्या उम्मीद रखेंगे?

हाली आगे फरमाते है,

"अगर कान धर कर सूनें एहले-इबरत
ता सीलोन से ता-ब-कश्मीर-ओ-तिब्बत
झमीं, रूख, बन, फल, फूल, रेत, परबत
ये फरियाद कर रहे हैं ब-हसरत,
कि कल फख्र था जिनसे एहले-जहां को,
लगा उनसे ऐब आज हिन्दुस्तां को.

यहां हाली स्व-आलोचना करते हुए मुसलमानों को अपनी खामियां छोडकर वापस हिन्दुस्तां का नगीना बनने का मशवरा देते हैं. हाली सच्चे देशभक्त थे, उन्हे सपनें में भी मालुम नहीं होगा कि मुलसमान-विरोधी कोई नेता स्वतंत्र भारत में हिन्दुओं को उक्साने के लिए इस नज़म का ऐसा उपयोग करेगा.   

सोमवार, 18 नवंबर 2013

चाय बेचनेवाले की उद्योगपत्नियां

आपने कभी चाय बेची थी, इस बात का कोई मायना नहीं है, क्योंकि आज आपकी इतनी सारी उद्योगपत्नियां आपको दिनरात मीडीया में प्रोजेक्ट कर रही है. बाबासाहब आंबेडकर ने सही कहा था, इस देश में मीडीया ही नेता को पैदा करता है.

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

एक बात लुकमानी भूल गए



गुजरात के बालासिनोर में एक अस्पताल के उद्घाटन में मुसलमानों ने मोदी को बुलाया. ऑल इन्डीया इमाम कमिटी के अध्यक्ष मौलाना लुकमानी तारापुरी बालासिनोर में नरेन्द्र मोदी के साथ एक मंच पर बैठे थे. दिव्य भास्कर को मौलाना बताते है कि मोदी की बालासिनोर में उपस्थिति से अच्छा मेसेज गया है. मुख्यमंत्री ने मौलाना अबुल कलाम को याद किया यह लुकमानी को अच्छा लगा. एक बात लुकमानी भूल गए. मोदी कलाम के साथ अहमदाबाद के नेकदिल मरहूम सांसद अहेसान जाफरी को भी याद कर लेते तो और अच्छा होता, जिनको मरवाने के लिए मोदी ने अपने दो मंत्रियों को पुलीस कन्ट्रोल रूम में बिठा दिया था.