सोमवार, 31 मार्च 2014

बरोडा पेम्फलेट

बरोडा पेम्फलेट का कर्टुन





बरोडा पेम्फलेट



वडोदरा में युजीसी के सेमिनार में एक अच्छा दोस्त मीला. धी बरोडा पेम्फलेट. अंग्रेजी भाषा में इतना बहेतरीन मेगेज़ीन गुजरात के किसी शहर से निकल रहा है, यह जानना हमारे लिए आश्चर्य की बात थी. मेगेज़ीन के कन्टेन्ट के बारे में एक ही उदाहरण काफी है. व्हुझ आर्ट? व्हुझ गेलेरी?’ में आठ कार्टुन्स द्वारा एन्टि-कास्ट आर्टीस्ट की नीओ-कार्टुनीस्ट से तुलना की गई है. दोनों के बीच ऐसा संवाद होता है:

एन्टी-कास्ट आर्टीस्ट: आई फर्गेट वर्णाश्रम इन माई आर्ट वर्क.
नीओ-कार्टुनीस्ट: रामायण एन्ड महाभारत आर थीम्स इन माई आर्ट वर्क.  
एन्टी-कास्ट आर्टीस्ट: आई डीड नोट फाइन्ड गेलरी स्पेस, स्ट्रीट वोल्स बीकेम माई गेलेरीझ.
नीओ-कार्टुनीस्ट: ओल गेलरीझ आर ओक्युपाईड वीथ माई आर्ट वर्क.
एन्टी-कास्ट आर्टीस्ट: नाइधर आर्ट वर्ल्ड नोर मीडीया रेकग्नाइज्ड माई आर्ट वर्क.
नीओ-कार्टुनीस्ट: आई पोप्युलराइज्ड ओलरेडी पोप्युलर, सो माई वर्क बीकेम पोप्युलर आर्ट.
एन्टी-कास्ट आर्टीस्ट: आई ओल्वेज फर्गेट पेट्रीआर्की इन माई आर्ट.
नीओ-कार्टुनीस्ट: आई हाईलाइट न्युडीटी इन माई आर्ट
एन्टी-कास्ट आर्टीस्ट: आई रीफ्लेक्ट सोसायटी इन माई आर्ट.
नीओ-कार्टुनीस्ट: आई रीफ्लेक्ट सोसायटी मेम्बर्स एन्ड मार्कट वेल्यू.
एन्टी-कास्ट आर्टीस्ट: इन धी नेइम ओफ सीडीशन गवर्नमेन्ट इम्प्रीजन्ड मी.
नीओ-कार्टुनीस्ट: गवर्नमेन्ट रेकग्नाइज माई आर्ट एन्ड गेव मी पद्मभूषण.
एन्टी-कास्ट आर्टीस्ट: ए काइन्ड हार्टेड जेन्टलमेन पब्लिस्ड माई वर्क पोस्थुमस्ली.
नीओ-कार्टुनीस्ट: फाइव पीएचडी थीसीस हेव बीन रीटन ओन माई आर्ट वर्क.

यह कार्टुन्स देखकर मुझे एम एफ हुसेन याद आ गए, जिन्हे नग्न हिन्दु देवियां और माधुरी दिक्षित में ज्यादा दिलचश्पी थी और जिन्होनें कभी भी इस देश के दलित की बेबसी पर कोई पेन्टिंग्स करना मुनासिब नहीं समजा. संघ परिवार के बजरंगी लोग हुसेन को गालियां देते रहे और कुछ लोग कला की स्वायत्तता पर बहस करते रहे. हमारे दलित द्रष्टिकोण से तो हुसेन और बजरंगियों में कोई फर्क नहीं था. 

बरोडा पेम्फलेट के संपादक वी. दिवाकर है.







शनिवार, 30 नवंबर 2013

मनुवाद या फासीवाद



दलित-बहुजन विमर्श से सरोकार रखनेवाले आंबेडकरवादी चिंतक जिसे मनुवाद कहते हैं उसे साम्यवादी-गांधीवादी बौद्धिक फासीवाद कहते हैं. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. मार्क्स ने सच ही कहा था, आपका द्रष्टिकोण आपके वर्गीय चरित्र पर निर्भर है. और अगर आप हिन्दुस्तान में हैं तो आपका द्रष्टिकोण आपकी जाति पर भी निर्भर है. मगर, छोडिये इन बातों को. मेरी सीधी सादी समज यह है कि आप आरएसएस को सिर्फ फासीवादी या मनुवादी मत कहिये. संघ मनुवादी है और इसलिए फासीवादी भी है.

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

दीने-हिझाझी का बेबाक बेडा



पटना में मोदी ने अपने भाषण के दौरान अल्ताफ हुसैन हाली की एक नज़म की कुछ पंक्तियां सुनाई थी. किसी ने मोदी को लिखकर दी होगी, जो उन्हों ने चहेरे का पसीना पोंछते पोंछते कही थी, हालांकि उसमें दीने-हिझाझी की जगह उन्हो ने दीने-इलाही कहा था. मगर हम उस पर ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे. नज़म इस प्रकार थी:

"वो दीने-हिझाझी का बेबाक बेड़ा
निशां जिसका अक्सा-ए-आलम में पहुंचा
मुझाहिम हुआ कोई खतरा न जिसका
न उम्म में फटका, कुलझुम में जिझका
किये बे-सपर जिसने सातों समंदर
वो डूबा दहाने में गंगा के आकर."

मतबल, अरबस्तान के धर्म का वो नीडर जहाज, जिसका झंडा दुनिया में दुर दुर तक पहुंचा, जिसको रोकनेवाला कोई खतरा पैदा नहीं हुआ. न किसी देश में वो जुदा हुवा, न गहरे समंदर में डुबा, बिना मदद के जिसने सातो समंदर पार किये, वो गंगा नदी के मुख में आकर डुबा.

हाली ने 1857 में सर सैयद के कहने पर यह रचना की थी. अंगरेजी हकुमत में कौम के हालात देखकर सर सैयद ने हाली को कुछ ऐसी नज़म रचने को कहा था, जिसे सुनकर सोई कौम जाग उठे. तब हाली ने मुस्सदसे हाली की रचना की थी. हाली अपनी नज़म में आगे बताते है कि वह बेबाक बेडा गंगा के दहाने में आकर क्यों डुब गया. मोदी जैसे फंडामेन्टालिस्ट लोग जब ऐसी नज़म सुनाते है, तब जानबूझकर उसे तोड मरोडकर रखते है. अब मोदी से हम क्या उम्मीद रखेंगे?

हाली आगे फरमाते है,

"अगर कान धर कर सूनें एहले-इबरत
ता सीलोन से ता-ब-कश्मीर-ओ-तिब्बत
झमीं, रूख, बन, फल, फूल, रेत, परबत
ये फरियाद कर रहे हैं ब-हसरत,
कि कल फख्र था जिनसे एहले-जहां को,
लगा उनसे ऐब आज हिन्दुस्तां को.

यहां हाली स्व-आलोचना करते हुए मुसलमानों को अपनी खामियां छोडकर वापस हिन्दुस्तां का नगीना बनने का मशवरा देते हैं. हाली सच्चे देशभक्त थे, उन्हे सपनें में भी मालुम नहीं होगा कि मुलसमान-विरोधी कोई नेता स्वतंत्र भारत में हिन्दुओं को उक्साने के लिए इस नज़म का ऐसा उपयोग करेगा.   

सोमवार, 18 नवंबर 2013

चाय बेचनेवाले की उद्योगपत्नियां

आपने कभी चाय बेची थी, इस बात का कोई मायना नहीं है, क्योंकि आज आपकी इतनी सारी उद्योगपत्नियां आपको दिनरात मीडीया में प्रोजेक्ट कर रही है. बाबासाहब आंबेडकर ने सही कहा था, इस देश में मीडीया ही नेता को पैदा करता है.